खिताब छोटा हो या बड़ा, उस प्रतियोगिता में भाग लेने वाली हर टीम उसे जीतना चाहती है। और अगर वो खिताब विश्व चैम्पियन का हो तो कहने ही क्या। उसका एक अलग ही मजा होता है। जब चैम्पियनशिप पहली बार हो तो और भी यादगार बन जाती है। लेकिन कभी-कभी चैम्पियन बनना जरूरत भी होती है। ऐसा ही हुआ था 2007 के पहले टी-20 विश्व कप में। ये जीत भारत के लिए जरूरी भी थी। आईए जानते हैं कि क्यों?
भारतीय क्रिकेट में छाई निराशा को दूर करने के लिए जरूरी थी ये जीत
वेस्टइंडीज में खेला गया 2007 का वनडे विश्व कप भारतीय टीम के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। इस विश्व कप में भारतीय टीम कप्तान राहुल द्रविड, उपकप्तान सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, सौरव गांगुली, युवराज सिंह, जहीर खान, अनिल कुंबले, हरभजन, अजित अगरकर जैसे अनुभवी और दिग्गज खिलाड़ियों के होने के बावजूद भी पहले राउंड में ही हारकर प्रतियोगिता से बाहर हो गई थी। खिलाड़ियों के साथ-साथ खेल प्रेमियों में भी भयंकर निराशा छा गई, देश में क्रिकेट थम सा गया।
इसीलिए उसी साल पहली बार खेले जा रहे टी-20 विश्व कप के लिए टीम इंडिया अपने स्टार खिलाड़ियों राहुल द्रविड, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, अनिल कुंबले, जहीर खान के बिना दक्षिण अफ्रीका पहुंची, तो इस युवा टीम से किसी ने भी सेमीफाइनल तक पहुंचने की अपेक्षा भी नहीं की थी। लेकिन टीम न सिर्फ फाइनल में पहुंचने में सफल हुई, बल्कि अपनी चिरप्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को रोमांचक मुकाबले में हरा कर पहली टी-20 चैम्पियन भी बनी।
क्या डलवाया गया था जोगिंदर से अंतिम ओवर
उस फाइनल में फाइनल ओवर का भी अपना रोमांच था। दरअसल एक समय 158 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी पाकिस्तान की पारी लड़खड़ा गई थी। 77 रन पर अफरीदी के रूप में जब पाकिस्तान का छठा विकेट गिरा तो लगने लगा था कि भारतीय गेंदबाज पाकिस्तान की पारी को आसानी से समेत कर टीम को चैम्पियन बना देंगे। लेकिन मिस्बाह उल हक जम गए। उन्होंने पुछल्ले बल्लेबाजों के साथ मिलकर पाकिस्तान को जीत की दहलीज पर पहुंचा दिया।
अंतिम ओवर जीत के लिए मात्र 12 रन ही चाहिए थे, समस्या बस यही थी कि विकेट 1 ही था। समस्या भारत के साथ भी थी, क्योंकि स्ट्राइक थी जमे हुए बल्लेबाज मिस्बाह उल हक के पास। गेंदबाजी में विकल्प सीमित थे, क्योंकि पाकिस्तान की पारी को समेटने के प्रयास में आरपी, श्रीसंत और इरफान पठान अपना कोटा खत्म कर चुके थे। जो गेंदबाज थे उनमें सबसे बड़ा विकल्प हरभजन सिंह थे, लेकिन भज्जी लास्ट ओवर डालने के लिए कॉन्फिडेंट नहीं थे। जोगिंदर शर्मा के आस अनुभव की कमी थी। अन्य विकल्प में यूसुफ पठान के साथ भी अनुभव की ही समस्या थी। बाकी विकल्पों में से युवराज सिंह और रोहित शर्मा का प्रयोग उस दिन किया नहीं गया था। इसलिए एकदम से इतना महत्वपूर्ण ओवर देना सही नहीं था।
अंततः भज्जी के हाथ खड़े करने के बाद जोगिंदर पर कप्तान धोनी ने दांव लगाया। पहली गेंद पर उन्होंने कोई रन नहीं दिया। लेकिन अगली गेंद पर मिस्बाह ने भारतीय टीम की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया। अब 4 गेंदों पर 6 रन चाहिए थे। मिस्बाह ने स्कूप शॉट से चौका लगाने का निर्णय लिया, लेकिन वो सीधे श्रीसंत के हाथों में मार बैठे। उनके साथ-साथ पाकिस्तान की चैम्पियन बनने की उम्मीदें भी आउट हो गई और टीम इंडिया पहली टी-20 विश्व विजेता बन गई।