Silent Written Bid, Silent Bid: आईपीएल 2023 के लिए आज कोच्चि में प्लेयर्स की मंडी सजने वाली है। इस दौरान 405 खिलाड़ियों पर 10 फ्रेंचाइजी बोली लगाएंगी। सभी टीमों के पास अधिकतम 87 स्लॉट खाली हैं, ऐसे में इससे ज्यादा खिलाड़ी आज नहीं बिकेंगे। आईपीएल टीमों के पर्स में 206.5 करोड़ रुपये बकाया हैं। हैदराबाद का पर्स सबसे ज्यादा मजबूत है, उनके पास 42 करोड़ 25 लाख रुपये बाकी है। आज कुछ प्लेयर्स को लगभग सभी फ्रेंचाइजी अपने पाले में करना चाहेंगी, ऐसे में ऑक्शन के दौरान अच्छी-खासी खींचतान देखने को मिल सकती है।
कम यूज होती साइलेंट बिड
अगर किसी खिलाड़ी पर दो फ्रेंचाइजी बराबर की बोली लगाती है तो साइलेंट बिडिंग से इसका फैसला होगा। आईपीएल ऑक्शन में साइलेंट बिडिंग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा नहीं हुआ है। 2010 में वेस्टइंडीज के दिग्गज ऑलराउंडर पोलार्ड को मुंबई इंडियंस ने साइलेंट बिडिंग से ही खरीदा था। तो आइए जानते हैं कि आखिर यह साइलेंट बिडिंग क्या होती है और नीलामी में कब इसकी जरूरत पड़ती है।
बीसीसीआई ने बताए ये नियम
ऑक्शन से पहले बीसीसीआई ने सभी फ्रेंचाइजी को कुछ नियम बताए हैं। इनमें सभी टीमों को ओवरऑल पर्स की 75 प्रतिशत राशि खत्म करनी होगी। ऑक्शन में 'राइट टू मैच' कार्ड उपलब्ध नहीं रहेगा। इस कार्ड के द्वारा फ्रेंचाइजी अपने रिलीज प्लेयर पर लगी सबसे बड़ी बोली की कीमत चुकाकर उसे अपने पाले में कर सकती थी। एक टीम मिनिमम 18 और अधिकतम 25 खिलाड़ी रख सकती है, इनमें विदेशी खिलाड़ियों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है। पहले राउंड में नहीं बिकने वाले खिलाड़ी फ्रेंचाइजी की मांग पर एक्सीलिरेटेड राउंड में शामिल किए जा सकते हैं। इसके अलावा साइलेंड बिड का नियम भी है।
कब काम आती है साइलेंट बिडिंग
साइलेंड बिड का उपयोग दुर्लभ कंडीशन यानी टाई की स्थिति में ही किया जाता है। जब किसी प्लेयर पर दो या उससे ज्यादा फ्रेंचाइजी की बोली बराबर रहे। ऐसा सिर्फ तभी संभव है, जब किसी खिलाड़ी पर लगी एक फ्रेंचाइजी की बोली के बराबर बिड दूसरी या तीसरी फ्रेंचाइजी भी लगा देती है और उसके बाद किसी भी फ्रेंचाइजी के पास या तो रकम नहीं बचती या वो उससे ज्यादा की बोली लगाने को तैयार नहीं होतीं। तो इस स्थिति में बोली टाई हो जाती है। ऐसे में ऑक्शन जिस रकम पर टाई होता है उसे प्लेयर की नीलामी की कीमत मानी जाती है।
किस टीम को मिलता है खिलाड़ी
लेकिन अब खिलाड़ी किस फ्रेंचाइजी का हिस्सा होगा इसके लिए टाई-ब्रेकर के तौर पर साइलेंट बिड का इस्तेमाल किया जाता है। टाई में शामिल सभी फ्रेंचाइजी को एक फार्म भरना होता है, जिसमें वह एक रकम लिखकर देती हैं। इस साइलेंट रिटन बिड को बीसीसीआई के पास जमा करा दिया जाता है। साइलेंट बिड की रकम को जीतने वाली फ्रेंचाइजी बीसीसीआई के पास 30 दिन के भीतर एक बार में जमा करती है।
इस रकम का खुलासा नहीं किया जाता है। ये रकम बीसीसीआई के पास ही रहेगी, खिलाड़ी को वही फीस मिलेगी जिस पर बोली टाई हुई थी। साइलेंट बिड की रकम को फ्रेंचाइजी के सैलरी कैप से अलग माना जाएगा। टीम के सैलरी कैप से सिर्फ उतने ही पैसे कटेंगे जो उन्होंने मेन बोली में लगाए थे। साइलेंट बिडिंग में रकम की कोई लिमिट नहीं है। अगर गुप्त नीलामी भी टाई रहती है तो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है।