Cricketer Utkarsh Dwivedi: क्रिकेट भारत में केवल एक खेल नहीं है, यह एक भावना है, एक जुनून है, और शायद एक ऐसा सपना जिसे लाखों बच्चे आँखों में लेकर चलते हैं। उत्कर्ष द्विवेदी का सफर, जो कानपुर के एक साधारण परिवार से शुरू हुआ, क्रिकेट के प्रति समर्पण और अदम्य इच्छा शक्ति की अनोखी मिसाल है। पेश है उत्कर्ष द्विवेदी की प्रेरणादायक जीवनी और उनके अनोखे कौशल की कहानी।
Utkarsh Dwivedi: आरंभिक जीवन और संघर्ष
उत्कर्ष द्विवेदी का जन्म 25 अक्टूबर 1997 को हुआ था। उनकी जिंदगी का सफर कठिनाइयों से भरा रहा। बचपन में पिता का साया सिर से उठ गया, और एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार में बड़े होने के कारण उनके सामने समाज और परिवार की कई रूढ़िवादी सोच की बाधाएँ आईं। खेल-कूद, संगीत या अभिनय को अक्सर मध्यम वर्गीय परिवारों में तवज्जो नहीं दी जाती, लेकिन उत्कर्ष ने इन कठिनाइयों को पार किया और क्रिकेट खेलने का सपना साकार करने की ठानी।
उन्हें शुरुआत में अपने घर के पास के सरकारी ग्राउंड में टेनिस क्रिकेट खेलने का मौका मिला। बचपन में साधारण बल्ले और उपकरणों के साथ शुरुआत करने वाले उत्कर्ष ने अपने जुनून और कड़ी मेहनत के दम पर खुद को कानपुर की सबसे प्रतिष्ठित अकादमियों में से एक, कामला क्लब क्रिकेट नर्सरी में दाखिला दिलवाया। इस सफर में उन्होंने अपने पहले कोच इंदरपाल सिंह से बल्लेबाजी के गुर सीखे और अपनी ताकत को पहचाना।
उत्कर्ष ने जल्द ही महसूस किया कि केवल बल्लेबाज बनना उनकी सीमा नहीं हो सकती है, खासकर वित्तीय संसाधनों की कमी के चलते। इसलिए उन्होंने खुद को एक ऑलराउंडर के रूप में ढालने का निर्णय लिया और धीरे-धीरे बॉलिंग में भी ध्यान दिया। उनके कोच ने उनके बॉलिंग में विशेषता को पहचाना और उन्हें लेग-ब्रेक गेंदबाज बनने के लिए प्रेरित किया।
कई सालों की कड़ी मेहनत और अनवरत प्रशिक्षण ने उन्हें खासतौर पर "अंबिडेक्सट्रस बॉलर" बनने की ओर प्रेरित किया। यह उनकी कड़ी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि वह दाएँ हाथ से लेग ब्रेक और बाएँ हाथ से चाइनामैन गेंदबाजी करने में सक्षम हो सके। भारत के क्रिकेट इतिहास में ऐसा अनोखा कौशल कम ही देखने को मिलता है, और आज भी यह एक दुर्लभ प्रतिभा मानी जाती है।
शुरुआती उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ
उत्कर्ष ने 2011 में अंडर-17 जिला मैचों में हिस्सा लिया और 2 मैचों में 7 विकेट लिए। इसके बाद उन्होंने ओ.पी. जिंदल ट्रॉफी (रांची) में 2013 में रणजी सीनियर डिवीजन के लिए खेलते हुए 4 मैचों में 14 विकेट झटके। कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन के लिए खेलते हुए उन्होंने 15 मैचों में 39 विकेट लिए।
उनकी प्रतिभा के बल पर उन्हें मुंबई इंडियंस ने सीधे कॉल किया, और उन्हें 2016-17 सीजन के लिए एक रिजर्व खिलाड़ी के रूप में चुना गया। इसके बाद, उन्होंने कई राज्यों के रणजी और अन्य प्रैक्टिस सत्र में हिस्सा लिया, जैसे पंजाब, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, और राजस्थान के साथ।
अंतर्राष्ट्रीय मान्यता और अबू धाबी टी-10 लीग में चयन
उत्कर्ष का सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक अबू धाबी टी-10 सीजन 3 में वीडियो ट्रायल के माध्यम से उनका चयन था। इस चयन प्रक्रिया में विश्वभर के लगभग 30,000 खिलाड़ियों ने भाग लिया था, और उनमें से केवल टॉप 50 खिलाड़ियों को चुना गया, जिसमें भारत से केवल 12 खिलाड़ी थे। उत्कर्ष का नाम भी इनमें शामिल था, लेकिन टॉप 8 में जगह न मिल पाने के कारण उन्हें इस लीग में खेलने का मौका नहीं मिला। इस असफलता के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और खुद को और भी मजबूत बनाने के लिए प्रयासरत रहे।
आईपीएल के लिए मुंबई इंडियंस और कोलकाता नाइट राइडर्स के साथ
उत्कर्ष के प्रयासों का परिणाम तब दिखा जब उन्हें 2020 में मुंबई इंडियंस के साथ आईपीएल कैंप में एक प्रैक्टिस बॉलर के रूप में आमंत्रित किया गया। कोविड-19 महामारी के कारण हालांकि यह अवसर पूरी तरह से साकार नहीं हो सका। इसके बावजूद, उन्होंने अपनी मेहनत जारी रखी और 2023 में कोलकाता नाइट राइडर्स के प्री-कैंप में भी अपना कौशल दिखाया, जहाँ उन्होंने अनुकूल रॉय जैसे अंडर-19 और रणजी खिलाड़ी को अपनी गेंदबाजी से प्रभावित किया।
जीवन की कठिनाइयाँ और आत्म-निर्भरता का सबक
अपने सफर में उत्कर्ष को कई बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ट्रेन में बिना टिकट यात्रा, जनरल डिब्बे में खड़े होकर सफर करना और कई महीनों तक केवल 20 रुपये में एक समय का भोजन करना - ये सब उनके संघर्ष का हिस्सा रहे। उन्होंने मुंबई में रहकर खुद को बेहतर बनाने के लिए अंपायरिंग और फोटोग्राफी जैसी अस्थायी नौकरियाँ कीं। इन कठिनाइयों ने उन्हें और भी मजबूत बनाया और आत्म-निर्भरता का पाठ सिखाया।
उत्कर्ष की कहानी यह दर्शाती है कि किसी भी क्षेत्र में सफलता केवल टैलेंट से नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत, अनुशासन और दृढ़ संकल्प से हासिल की जा सकती है। अपनी अनोखी बॉलिंग स्टाइल के चलते वह भारतीय क्रिकेट में एक खास स्थान रखते हैं, और वह भविष्य में भारतीय टीम के लिए खेलने का सपना देख रहे हैं। उनकी कहानी भारत के हर युवा के लिए प्रेरणास्रोत है जो बड़े सपने देखते हैं और उन्हें पूरा करने की राह पर संघर्षरत हैं।
उत्कर्ष द्विवेदी की यह कहानी सचमुच एक मिसाल है कि जिंदगी में कोई भी सपना छोटा नहीं होता; जरूरत है तो बस उस सपने को पाने की ज़िद, जुनून, और मेहनत की।
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