भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) में चल रही कुश्ती ने सेल्फ गोल करते हुए भारतीय कुश्ती को ही हरा दिया है। ऐसा कहने का कारण ये है कि विश्व कुश्ती संघ (United World Wrestling) ने भारतीय कुश्ती महासंघ (Wrestling Federation of India) की मान्यता रद्द करने का निर्णय लिया है।
इसकी वजह ये है कि विश्व कुश्ती संघ (UWW) ने भारतीय कुश्ती महासंघ को 30 मई को एक चेतावनी जारी करते हुए 45 दिन समय सीमा के अंदर भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव सम्पन्न कराने का निर्देश दिया था। मगर 15 जुलाई की डेडलाइन बीतने के बाद भी भारतीय कुश्ती महासंघ ऐसा करने में नाकाम रहा।
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बार-बार टल रहे थे भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव
यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग द्वारा चुनाव के लिए 45 दिन की जो डेडलाइन दी गई थी, वो 15 जुलाई को समाप्त होने से पहले 11 जुलाई को चुनाव कराने का निर्णय लिया गया था, लेकिन तभी असम रेसलिंग एसोसिएशन अपनी मान्यता को लेकर असम हाईकोर्ट से चुनाव पर स्टे ले आया। जिस कारण चुनाव रद्द करने पड़े।
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फिर इसके बाद 12 अगस्त की तारीख चुनाव के लिए तय हुई थी। चुनाव अधिकारी एम एम कुमार 12 अगस्त को चुनाव कराएं, उससे पहले एक बार फिर अड़चन आ गई। इस बार चुनाव से पूर्व 11 अगस्त को दीपेन्द्र हुड्डा के समर्थन वाली हरियाणा कुश्ती एसोसिएशन ने हरियाणा हाईकोर्ट से इस चुनाव को रोकने के लिए स्टे ले लिया। जिसका खामियाजा संघ को अपनी मान्यता गंवाकर और खिलाड़ियों को अपना करियर दांव पर लगाकर भुगतना पड़ रहा है।
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WFI की आपसी खींचतान ने किया कुश्ती को बर्बाद
कुछ खिलाड़ियों द्वारा WFI के प्रेसीडेंट ब्रजभूषण सिंह पर यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे। उनके बाद उन्हें अस्थाई रूप से पद से हटा दिया गया। WFI की जगह एक कमेटी ADHOC का गठन किया गया था। इस कमेटी को खिलाड़ियों के आरोपों की छानबीन भी करनी थी। इसके अलावा इस कमेटी को अगले चुनाव तक कुश्ती संघ का कार्य देखना था।
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जब भी भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव कराने का प्रयास किया गया, किसी न किसी ने टांग अड़ा दी और चुनाव टलते रहे। दरअसल भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव न हो पाने के पीछे इससे जुड़े लोगों की महत्वाकांक्षा और राजनीति ही जिम्मेदार रही। अपनी महत्वाकांक्षा के लिए इससे जुड़े संघ के पदाधिकारियों ने कुश्ती का बेड़ा गर्क कर दिया। कुश्ती संघ की राजनीति ही इसकी मान्यता रद्द होने की सबसे बड़ी वजह बनी।